इक उसे देवता बनाने में।

ख़ूब रुसवा हुए ज़माने में।।


वो मुझे और याद आता है

मुश्किलें हैं उसे भुलाने में।।


इश्क़ की आतिशी अदाएं हैं

लोग जल जल गए बुझाने में।।


बिजलियों को ये एहसास कहाँ

वक्त लगता है घर बनाने में।।


दिल में उसके कोई गिरह होगी

जो झिझकता है आज़माने में।।

सुरेशसाहनी

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