तुम्हें जितना अदावत पे  यक़ीं है।

हमें उतना मुहब्बत पे  यक़ीं है।। 


हमें किस्मत पे है बेशक़ भरोसा

मगर उतना ही मेहनत पे यक़ीं है।। 


मुसीबत में हमारा साथ देगा

हमें उस नेकनीयत पे यक़ीं है।। 


तुम्हे हक़ है किसी रस्ते से जाओ

हमें  तो आदमियत पे यक़ी है।।


ख़ुदा पर छोड़ देते है नतीज़ा

हमें अपनी अक़ीदत पे यक़ीं है।। 


यक़ीन उतना ख़ुदा पर रख के देखो

तुम्हें जितना कि नफ़रत पे यक़ीं है।। 


तुम्हें इबलीस की दुनिया मुबारक़

हमारा नेक सोहबत पे यक़ीं है।। 


सुरेश सहनो, कानपुर

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