तुम तो मजबूर भी नहीं थे फिर।
इतने मग़रूर भी नहीं थे फिर।।
बेवफ़ाई की कुछ वज़ह तो हो
दिल से तुम दूर भी नहीं थे फिर।।
तर्ज़े-इबलीस तुम चले तो क्यों
हम तो मंसूर भी नहीं थे फिर।।
दिल जो मिस्मार कर दिये तुमने
बुत से मामूर भी नहीं थे फिर।।
कैसे रुसवा हुआ कोई आशिक़
हम तो मशहूर भी नहीं थे फिर।।
इश्क़ अंधा है बात यूँ तय है
वो कोई हूर भी नहीं थे फिर।।
हमने नज़रों के ताज बख़्श दिए
तुम कोई नूर भी नहीं थे फिर।।
मग़रूर/ घमंडी
तर्ज़े-इबलीस/शैतान की तरह
मन्सूर/ ग़ैब वाला,ईश्वरीय शक्ति युक्त, एक सूफी संत
मिस्मार/ ध्वस्त
बुत/ मूर्ति या महबूब
मामूर/ आबाद
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
Comments
Post a Comment