तुमको गुल या गुलाब क्या लिखते।
फस्ले-गुल पर क़िताब क्या लिखते।।
हुस्न लिखने में स्याहियां सूखीं
इश्क़ था बेहिसाब क्या लिखते।।
तुम हमारा बदल न ढूंढ़ सके
हम तुम्हारा ज़बाब क्या लिखते।।
तेरे शीशे में ग़र नहीं उतरे
हम तुम्हे लाज़वाब क्या लिखते।।
तुम नहीं थे तुम्हारी यादें थीं
और खाना ख़राब क्या लिखते।।
होश आये तो कुछ लिखें तुमपर
हुस्न सागर शराब क्या लिखते।।
ज़िन्दगी को नहीं समझ पाये
ज़िन्दगी का हिसाब क्या लिखते।।
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