साँझ सबेरे बादल घेरे
फिर भी मन तनहाई में।
छनन छनन छन बूँदें बरसे
आग लगे तरुणाई में।।....
सावन फिर भी सावन है
प्यारा है मनभावन है
कवि कोविद सारे कहते हैं
सावन है तो जीवन है
मेरा सावन तब मैं जानूँ
यार दिखे अंगनाई में।।
साँझ सबेरे बादल घेरे
फिर भी मन तनहाई में।।...
सावन प्यास बुझाता है
सावन आग लगाता है
यार नहीं तो कैसा सावन
यार बिना क्या भाता है
आग लगे तो कौन बुझाये
यार बिना पुरवाई में।।
सांझ सवेरे बादल घेरे
फिर भी मन तन्हाई में।।....
सखियां लौटी हैं पीहर में
खुशियां टोले टब्बर में
तन में रहकर बेतन हूँ मैं
यार बिना बेघर घर में
मन भूला है यार -गली में
तन झूले अमराई में।।
सांझ सवेरे बादल घेरे
फिर भी मन तन्हाई में।।....
सुरेशसाहनी
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