आशाओं ने  पंख पसारे।

भावों  ने  दे दिए हुलारे।।

मन पहुँचा खुशियों के द्वारे

किन्तु समय हँस पड़ा ठठा रे।।


कुछ बीती बातों का रेला

आया मैं रह गया अकेला

सोचा वर्तमान संग रह लूँ

पर भविष्य ने उधर धकेला


उसी ओर चल पड़ा मुसाफ़िर

उजियारा था जिधर अन्हारे।।


वस्त्र पहन कर नए नवेले

कुछ दिन खाये कुछ दिन खेले

फिर दुनिया के मिले झमेले

किसे सुहाते कपड़े मैले


नया पहनने की खातिर अब

किस पथ पर हम चले उघारे।।


एक चदरिया झीनी झीनी

पंच तत्व की बीनी बीनी

ओढ़ पहिर कर दाग लगाकर

कहना ज्यूँ की त्यों धर दीनी


लाख खरच कर कुछ न कमाया

खाक चलेगा अगम बजारे।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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