खुशियों के आलम भी होते।

खुश अपने बरहम भी होते।।

ये सचमुच अनजान सफर है

तुम होते तो हम भी होते।।

होते हैं जब गुल कांटों में

शोलों में शबनम भी होते।।

सब्र क़यामत तक रखते तो

वादे पर क़ायम भी होते।।

सचमुच का मौला होता तो

हौव्वा -औ- आदम भी होते ।।

हम ज़िंदा होते तो बेशक़

अपने खून गरम भी होते।।

पेंचोखम उनकी ज़ुल्फ़ों  के

हम होते तो कम भी होते।।

मुल्क़ अगर जिंदा होता तो

आवाज़ों में बम भी होते।।

सुरेश साहनी ,कानपुर

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