हम ने खुद को खूब छला है।

इसका ये परिणाम मिला है।।

पहले अच्छे दिन के वादे

अब उनको कहता जुमला है।।

मैं ये भी हूँ मैं वो भी था

यह गिरगिट से बड़ी कला है।।

हम हैं जनम जात व्यापारी

अब तो समझो क्या मसला है।।

जीवन के आनंद मार्ग में

शायद पत्नी बड़ी बला है।।

लोग  चित्त है चारो खाने

उस ने ऐसा दांव चला है।।

सरकारी जी निगम हो गए

यह विकास है या घपला है।।

सुरेशसाहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है