मुश्किल एक सहल लगती हो।

दिल का एक अमल लगती हो।।

इतनी शोखी ऐसी रंगत

मीठा कोई फल लगती हो।।

तुम पर ग़ज़ल  लिखें तो कैसे

तुम ख़ुद एक ग़ज़ल लगती हो।।

मरमर सा शफ्फाक बदन है

बेशक़ ताजमहल लगती हो।।

मैं जैसे बेचैन भ्रमर हूँ

तुम ज्यों खिला कंवल लगती हो।।

मेरी हर मुश्किल -उलझन का

तुम्ही आख़िरी हल लगती हो।।

सुरेश साहनी

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