तेरी ज़ुल्फ़ों में पेंचों खम बहुत है।

हमें इस बात का भी ग़म बहुत है।।

न इतना याद आओ जी न पायें

तुम्हारी याद का इक दम बहुत है।।

हमारे हिज़्र में भी खिल रहे हो

मगर कहते हो तुमको ग़म बहुत है।।

मुहब्बत नाम ही है ताज़गी का

फ़क़त इस ज़ीस्त का संगम बहुत है।।

हुई मुद्दत हमें बिछुड़े हुए भी

हमारी आँख लेकिन अब भी नम है।।

चलो अब झूठ के स्कूल खोलें

सुना है झूठ में इनकम बहुत है।।

सुरेश साहनी,कानपुर

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