क्या से क्या हो गया मैं तुम्हारे लिए।
और होता भी क्या मैं तुम्हारे लिए ।।
सुन के भी अनसुना तुम जताते रहे
जबकि गाता रहा मैं तुम्हारे लिए।।
कुफ़्र थी बुतपरस्ती पता था मगर
कुफ़्र करता रहा मैं तुम्हारे लिए।।
सुरेशसाहनी
क्या से क्या हो गया मैं तुम्हारे लिए।
और होता भी क्या मैं तुम्हारे लिए ।।
सुन के भी अनसुना तुम जताते रहे
जबकि गाता रहा मैं तुम्हारे लिए।।
कुफ़्र थी बुतपरस्ती पता था मगर
कुफ़्र करता रहा मैं तुम्हारे लिए।।
सुरेशसाहनी
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