चकमक और उजास रहा मन।
जब तक अपने पास रहा मन।।
बाबू के कंधे पर चढ़कर
ऊंचा हरियर बांस रहा मन।।
तन था सूखे अमलतास सा
सेमर सोच पलाश रहा मन।।
मिलने से पहले तो खुश था
मिलकर बहुत उदास रहा मन।।
सहज सखा भी हो सकता था
क्यू कर उसका दास रहा मन।।
चकमक और उजास रहा मन।
जब तक अपने पास रहा मन।।
बाबू के कंधे पर चढ़कर
ऊंचा हरियर बांस रहा मन।।
तन था सूखे अमलतास सा
सेमर सोच पलाश रहा मन।।
मिलने से पहले तो खुश था
मिलकर बहुत उदास रहा मन।।
सहज सखा भी हो सकता था
क्यू कर उसका दास रहा मन।।
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