सब कहते हैं इतना ज्यादा लिखना  ठीक नहीं।

कविता में इतना भी डूबा रहना ठीक नहीं।।

सब कहते है घर समाज धन सब से जाओगे

थोड़े सी संतुष्टि   समर्पण इतना ठीक नहीं ।।

सब कहते हैं अब दुनिया झूठे लोगों की है

कड़वा सच है सच की खातिर लड़ना ठीक नहीं।।

सब कहते हैं बेटी को दूजे घर जाना है

बेटी को बेटे का दरजा देना ठीक नहीं।।

सब कहते हैं सुन सुन मेरे कान खराब हुए

हमने सोचा है इतना भी सुनना ठीक नहीं।।

सुरेश साहनी

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