तुम मिले ज़िन्दगानी ग़ज़ल हो गयी।
शायरी ही हमारा बदल हो गयी ।।
तुम को देखे बिना चैन आता नहीं
जैसे तुम ज़िन्दगी का अमल हो गयी।।
तुम भी निखरे हो इसमें कोई शक़ नहीं
इक कली खिल के ताज़ा कंवल हो गयी।।
तुम न थे मुश्किलें मुश्किलें थीं मग़र
तुम मिले ज़ीस्त कितनी सहल हो गयी।।
गोया मैं एक शायर का दीवान हूँ
तुम मेरी ज़िंदगी का रहल हो गयी।।
तेरे कदमों ने घर को नवाजा मेरे
घर मेरा कोठरी से महल हो गयी ।।
सुरेशसाहनी, कानपुर
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