जिस सनेह की मादकता में हम बौराये हैं।

आम नहीं हैं वो सखि मेरे साजन आये हैं।।

घिर आये हैं बादर करे रह रह शोर करें

नाच रहे हैं पिक उछाह में दादुर शोर करें

भरने को मन मानसरोवर   घन घहराये हैं ।।

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