शुरुआत में मुझे जैसे फेसबुकमीनिया ने जकड़ लिया था। फेसबुक पर बड़े बड़े नाम के लोग ,उनकी लम्बी चौड़ी प्रोफ़ाइल देख कर मैं उनसे जुड़ना चाहता था। जुड़े भी और कई बार मित्र संख्या 5000 हुई।फिर निष्क्रिय आईडीज हटा कर संख्या कम भी करते थे।कई बार लाइक कमेन्ट नहीं करने वालों से खिन्न होकर उन्हें अमित्र करता रहा। ऐसे में एक बार शहर के एक प्रतिष्ठित हस्ताक्षर एक कार्यक्रम में मिले। कार्यक्रम समाप्ति के बाद मैँ आयोजनस्थल से बाहर निकल रहा था। उन्होंने कंधे पर हाथ रख दिया।स्वभावतः मैंने रुककर उन्हें पुनः प्रणाम किया।उन्होंने चलते चलते कहा,' सुरेश तुम जानते हो ! फेसबुक पर मैं तुम्हें और कमलेश ( Kamlesh Dwivedi) को निरन्तर पढ़ता हूँ।बहुत अच्छा लिखते हो। और उन्होंने मेरी कुछ रचनायें भी उधृत की।
मैं अवाक था। क्योंकि उनको मैने कभी लाइक या कमेन्ट करते नहीं देखा था।
अब धारणा बदल चुकी थी।
वास्तव में हमें लम्बी चौड़ी मित्र सूची की ज़रूरत नही है।अपितु हमें केवल उन मित्रों की ज़रूरत है जो एक दूसरे की भावनाओं को सम्मान देते हों। एक दूसरे का केअर करते हों और एक दूसरे के सुखदुख को अपना सुख और दुख समझते हैं।
आज इस भावना के साथ मैने कई अंतरराष्ट्रीय विद्वान मित्रों और मित्राणियों को तिलांजलि दे दी।
Comments
Post a Comment