कुछ मुलाकात के बहाने दे।
कुछ तो दिल के करीब आने दे।।
मौत से कह कि इंतज़ार करे
ज़िन्दगी को गले लगाने दे।।
शक़ नहीं है तेरी इनायत पर
कुछ तो अपनों को आज़माने दे।।
रात रंगीनियों में बीतेगी
शाम तो सुरमई सजाने दे।।
झूठी हमदर्दियों से बेहतर है
मेरे ज़ख्मों को मुस्कुराने दे।।
इसके साये में शाम करनी है
अपनी जुल्फों के शामियाने दो।।
मौत मुद्दत के बाद आई है
ज़िन्दगी अब तो मुझको जाने दे।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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