एक दिन कविता-ग़ज़ल के नाम हो।
रात भी ऐसी पहल के नाम हो।।
छोड़ कारोबार सारे एक दिन
रेडियो अखबार सारे एक दिन
भूल कर नफ़रत अदावत दुश्मनी
सिर्फ बांटें प्यार सारे एक दिन
आबे-जमजम में नहाया एक दिन
गीत की गंगा के जल के नाम हो।।
भाव के विन्यास की धारा बहे
आस की विश्वास की धारा बहे
आह भी निकलें तो हों आनन्दमय
तृप्ति ले उच्छवास की धारा बहे
हार में जो जीत का आनन्द दे
ज़िन्दगी ऐसी ही कल के नाम हो।।
एक दिन कविता-ग़ज़ल के नाम हो।।
सुरेश साहनी
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