बच्चियों ने आपबीती सब कही रोते हुये।

अफसरों ने लिख दिया सब ठीक है हँसते हुये।।

नोच कर शैतान ने उनको सयाना कर दिया

जिस्म उनके छिल गए सब जानवर ढोते हुये।।

सैकड़ों रातें क़यामत अनगिनत दिन दहर के

ऐ खुदा सब कुछ सहा मैंने तेरे होते हुये।।

क्या करें फरियाद मुंसिफ भी कोई अंकल न हों

ज़िन्दगी तुझसे भरोसा उठ गया लड़ते हुये।।

लड़कियां अब भी डरी सी थीं पुलिस के सामने

वो दरिंदा हँस रहा था हथकड़ी पहने हुए।।

सुरेश साहनी

मुज़फ्फरपुर


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