साथ तुम्हारे मंज़िल तो क्या
कुछ भी मुझसे दूर नहीं था।
पर क्या करता हार गया मैं
नीयति को मंजूर नहीं था।।
साथ चले थे हम तुम दोनों
जीवन के पथरीले पथ पर
किन्तु प्रतीत रही जैसे हम
आरुढ़ रहे सजीले रथ पर
रहे गर्व से किन्तु हमारे
दिल मे तनिक गुरुर नही था।।
आत्मीयता थी हममें पर
शर्तों का सम्बंध नहीं था
रिश्ता था फिर भी स्वतंत्र थे
बंधन का अनुबन्ध नहीं था
रुचियों की सहमति थी कोई
सहने पर मजबूर नहीं था।।
Comments
Post a Comment