वक़्त घूंघट उठाता रहा रात का
रात मारे हया के सिमटती रही।
चाँदनी चाँद का वस्ल होता रहा
देख तारों को शबनम सिसकती रही।।
हो गए तब गुलाबी गुलाबी कँवल
धूप ने जब उन्हें छू लिया प्यार से
शबनमी होठ उनके दहकने लगे
ज्यूँ शरारे हुए सुर्ख़ अंगार से
देख भंवरे हुए बावरे बावरे
बेखबर एक तितली भटकती रही।।
हर हृदय में हुआ प्यार का संक्रमण
शुष्क मौसम हुआ सावनी सावनी
दिन महकने लगे कामऋतु के सदृश
सुप्त वीणा सुनाने लगी रागिनी
किन्तु निस्पृह रहा एक उनका हृदय
बात रह रह के दिल को खटकती रही।।
सुरेश साहनी , कवि और विचारक
कानपुर
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