मेरे होने की बाते तो होती ही हैं

पर मैं हूं यह बात उन्हें स्वीकार नहीं है

मुझे पता है एक न एक दिन ऐसा होगा

जब मैं होकर भी दुनिया में नहीं रहूंगा

तब होंगे आयोजित मेरे खेल तमाशे

कई बार मेरी हंसती तस्वीर लगाकर

जबकि मैं भी कभी हँसा हूं

यह खुद मुझको नहीं पता है

चलो ठीक है इसी बात पर हंस लेते है

किंतु बहुत से लोग अपरिचित और सुपरिचित

मेरे बारे में सतही या झूठे सच्चे

कितने ही प्रेरक प्रसंग ले भाव प्रवण हो

अनुपस्थिति में मुझे उपस्थिति बतलाएंगे

कुछ आंखों में आंसु के सैलाब उठाए

मेरे बारे में मेरी रचनाओं पर भी

बिना पढ़े ही लंबी लंबी बात करेंगे

मुझे पता है मेरा होना नहीं मानकर

उल्टा सीधा आए बांए कुछ भी बोलेंगे

और कहेंगे रचनाकार सदा रहता है

अपने बाद उपस्थित रचनाओं में

और पाठकों से अपनी रचना के द्वारा 

वो जब चाहे तब संवाद किया करता है

अक्सर मैने देखा है ऐसे अवसर पर

यह अपूरणीय क्षति है ऐसा कहने वाले

उसी समय यह उसी मंच के दाएं बाएं

समकालीनों की निंदा करते मिलते हैं

मुझे पता है जिन्हें प्यार है मुझसे सचमुच

उन आंखों में नमी रहेगी अश्रु न होंगे

क्योंकि वे सारे अपनी भीगी पलकों से

किसी शून्य में इस आशा से तका करेंगे

शायद किसी दिशा से आता मैं दिख जाऊं


किंतु अभी जब मैं जिंदा हूं मेरा होना

या मेरे रहने का एक अस्तित्व बोध भी

उनको इतना परेशान करता रहता है

 जिसके कारण अक्सर वह अपने होने को

अपना होना भी स्वीकार नहीं करते हैं......

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