कुछ तुम्हें भी उलझने हैं ,हम भी कुछ मजबूर हैं।

अब तो लगता है यही इस राह के दस्तूर हैं।।

ज़िन्दगी की राह में ये इश्क के इनाम हैं

मरहले कुछ बढ़ गए हैं, मंज़िलें भी दूर हैं।।

ग़म के बादल इस क़दर छाये हैं अपने हाल पर

चाँद भी मद्धिम हुआ ,सूरज भी अब बेनूर है।।

सुरेशसाहनी

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