जब कहें अपनी कहानी या कि अफसाना तेरा।

क्या बताये ख़ुद को अपना या कि बेगाना तेरा।।


तुझको  फुरसत थी कहाँ समझे मेरी दीवानगी

फिर भी मेरा सब्र था हो जाना दीवाना तेरा।।


तू मुझे अपना तो कह दिलवर नहीं दुश्मन सही

अपनी मंज़िल है किसी सूरत भी कहलाना तेरा।।


ताज़ तो मुमकिन नहीं मुमताज़ अपनी ज़ीस्त में

पर मुझे तस्लीम है अंदाज़ शाहाना तेरा।।


तू शमा बन कर जले ये मैं न चाहूंगा कभी

घर को रोशन तो करेगा हुस्न आ जाना तेरा।।


 

सुरेश साहनी,कानपुर

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