जब भी होता है रुला देते हो।
किसलिए अपना पता देते हो।।
दर्द कुछ और बढ़ा देते हो।
जब भी जीने की दुआ देते हो।।
याद करते हैं तुम्हें रो रोकर
और तुम हँस के भुला देते हो।।
तुमसे ख़्वाबों में भी मिलना तौबा
बात हर इक से बता देते हो।।
इक दफा यूँ ही ज़हर भी दे दो
जिस तकल्लुफ़ से दवा देते हो।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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