मैं न हिन्दू न मुसलमान रहा।

पर मुक़द्दस मेरा ईमान रहा।।


जात थी और मेरी रोजी और

ये गनीमत है मैं इंसान रहा।।


ये तो तय है कि उसके आँखें हैं

मेरा अल्लाह निगेहबान रहा।।


मैं भी शामिल हूँ उसकी कुदरत में

मुझपे उसका ये एहसान रहा।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है