जियेंगे  खुल के  फिरकावार नही।

हमको मज़हब पे एतबार नही।।

तुझको जन्नत पे हैं यकीन मगर

रहती दुनिया पे एतबार नही।।

मैकदे में तू आके देख जरा

इससे बढ़कर कहीं क़रार नहीं।।

गर हमारा वो फ़िक्रमंद नही

हमको भी उसका इंतज़ार नही।।

शोहरतों पे गुरुर ठीक नही

चार दिन से अधिक बहार नही।।

सुरेशसाहनी

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