तुम्हारा फूल अब फरसा लगे है।
तुम्हारी बात से डर सा लगे है।।
हमारे मुल्क को तुम बेच दोगे
तुम्हारी साज़िशी मंशा लगे है।।
हमारे साथ कुछ धोखा हुआ है
न जाने क्यों हमें ऐसा लगे है।।
ग़रीबी भी बला की बेबसी है
कि अपने आप पर गुस्सा लगे है।।
लहू पीकर बड़ा नेता हुआ है
कहाँ से वो तुम्हे इंसा लगे है।।
गज़ब हैं आज के अख़बार वाले
जिन्हें शैतान भी ईसा लगे है।।
मेरी आँखों में कोई खोट होगा
तुम्ही दिल से कहो कैसा लगे है।।
सुरेशसाहनी, कानपुर
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