पहले  घर में घर ढूंढ़ें हम।

उसके बाद डगर ढूंढ़ें हम।।

शहरों से जब वापस लौटें

अपने गाँव नगर ढूंढ़ें हम।।

पहले ढूंढ़े खोया बचपन 

फिर पनघट पोखर ढूंढ़ें हम।।

अम्मा के आंचल में छुपकर

बाबूजी का डर ढूंढ़ें हम।।

काका-बाबा की डांटों में

अपनेपन के स्वर ढूंढ़ें हम।।

मुसकाती भउजी के मुख से

कुछ फूहर पातर ढूंढ़ें हम।।

सोनवा को दिल खोजे जैसे

धरती पर अम्बर ढूंढ़ें हम।।

पाँव पसर जाते थे जिनमें

पुरखों की चादर  ढूंढ़ें हम।। 

रिश्तों के ककहरे मिट गए

क्या अक्षर वक्षर  ढूंढ़ें हम।।

बाबा का हुक्का खोजें फिर

दादी का कम्बर ढूंढ़ें हम।।

हम भी आउटडेट हो चुके

अब अपना नम्बर ढूंढ़ें हम।।

सुरेश साहनी कानपुर 

9451545132

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