जी रहा हूँ ये ज़िन्दगी लेकर।

दिल की बस्ती लुटी पिटी लेकर।।


उसके ग़म के ज़हर में कुछ तो है

पी रहा हूँ खुशी खुशी लेकर।।


क्या करूँगा शराब के चश्मे

कौन आएगा तिश्नगी लेकर।।


हुस्न बैठा हुआ है महलों में

मैं हूँ सड़कों पे आशिक़ी लेकर।।


कौन आया है मेरे अपनों में

मेरे क़ातिल की पैरवी लेकर।।


अब भी उसके ख़याल आते हैं

मेरे गीतों में ताज़गी लेकर।।


रोशनी मैंने बाँट दी उनको

अपने हिस्से में तीरगी लेकर।।


मुन्तज़िर हूँ तो किस तमन्ना में

अपनी साँसे बुझी बुझी लेकर।।


आओ हम तुम अदीब चलते हैं

सू ए मक़तल रवानगी लेकर।।


सुरेश साहनी, अदीब 

कानपुर

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