मैंने तुम्हारे ख़त तो जलाए नहीं कभी।
अश्क़ों में बह गए थे बहाये नहीं कभी।।
तुमने कभी जो भूल के पूछा नहीं हमें,
तुम भी यहां ख्याल में आये नहीं कभी।।
तुम जो हमारी याद में जागे नहीं सनम
हम भी तुम्हारे ख़्वाब में आये नहीं कभी।।
तुम और हमारे ख़्वाब में आते तो किस तरह
हमने तुम्हारे ख़्वाब सजाये नहीं कभी।।
तुमने ही तो बनाये थे वो रेत के महल
वो खुद ढहे हैं हमने ढहाए नहीं कभी।।
तेरे जवाब थे यहाँ आयत मेरे लिए
तुमने मेरे सवाल उठाए नहीं कभी।।
तुमने तो खुद को ख़ुद ही पशेमाँ किया अदीब
हमने किसी को ज़ख़्म दिखाये नहीं कभी।।
सुरेश साहनी,अदीब
कानपुर
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