घिरे हैं आज भी बादल घनेरे।

मांझी!अब तो लंगर डाल दे रे।।

तेरी आवाज़ शहरों तक तो पहुंचे

नदी नालों से हटकर डाल डेरे।।

सुना है राम जी तुझसे मिले थे

लगाता क्यों नहीं दिल्ली के फेरे।।

सुरेशसाहनी, कानपुर

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