अंधेरों से लड़ना   ज़रूरी नहीं है ।

दिया बन के जलना ज़रूरी नहीं है।।

अभी हर तरफ भेड़िये घूमते हैं

बेटियों मत जनमना ज़रूरी नहीं है।।

ये बाबा ,ये मुल्ले ये मज़हब के दल्ले

इन्हें भाव देना ज़रूरी नहीं है।।

अगर नँगई सोच में आ गयी है

तो रहना बरहना ज़रूरी नहीं है।।

कहने लगे हैं भले लोग यह भी

सियासत में रहना जरूरी नहीं है।।

Suresh Sahani, Kanpur

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