अपने कमरे से निकल कर देखो।

सिर्फ़ आँगन में टहलकर देखो।।

प्यास सावन में बुझानी है तो

पहली बरसात में जल कर देखो।।

मुर्दा सांचों में न ढालो खुद को

मेरी साँसों में पिघलकर देखो।।

कुछ को अपनी भी नज़र लगती है

तुम भी आईना सम्हलकर देखो।।

मेरी आगोश है महफूज़ जगह

मेरे रहने पे फिसलकर देखो।।

चाँद तारे भी हंसी लगते हैं 

आसमानों को मचलकर देखो।।

टूट सकती है वो अमिया खट्टी

कोशिशों और उछलकर देखो।।

मेरे हासिल को समझ पाओगे

मेरे हालात में पलकर देखो।।

और उलझा हूँ मैं सुलझाने में

हो सके तुम भी सहल कर देखो।।

सुरेशसाहनी, कानपुर

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