मिलना है तो दिल से मिल।

कुछ खोकर हासिल से मिल।।

आईने में दिखता है

तू तेरे क़ातिल से मिल।।

मैं तेरा सैदायी हूँ

आ अपने बिस्मिल से मिल।।

रस्ता रस्ता भटका है

अब अपनी मंज़िल से मिल।।

हक़ ख़ुद बोलेगा क्या है

एक ज़रा बातिल से मिल।।

तुझको क़ाबिल बनना है

अपने से क़ाबिल से मिल।।

क़ामिल होना चाहे है

मुर्शिद -ओ-आमिल से मिल।।

सुरेशसाहनी, कानपुर

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