शहरों में कल चलते हैं।
छोड़ो जंगल चलते हैं।।
आँगन में दीवार उगी
सीनों पर हल चलते हैं।।
दिल पर दस्तक है सुनकर
खोलो सांकल चलते हैं।।
कब बोला है सांसों ने
बस अगले पल चलते हैं।।
खुश रहना है तो फिर चल
जैसे पागल चलते हैं।।
घुँघरू को आवाजें दो
बांधो पायल चलते हैं।।
मधुवन में मन भावन है
अबकी मंगल चलते हैं।।
नदिया है खामोश मगर
धारे कलकल चलते हैं।।
राधा तुम क्यों चुप चुप हो
रोको सांवल चलते है।।
* सुरेशसाहनी, कानपुर *
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