ज़िन्दगी बीत गयी कोशिश में।

प्यार के रंग मिले कब उस में।।

होंगे अल्फ़ाज़ बहर में उनके

मेरे जज़्बात नहीं बंदिश में।। 

दुश्मनों में तो न थी ताब कोई

वक्त शामिल था मगर साजिश में।।

दिल ने ताउम्र सजा क्यों भोगी

उनकी नज़रों से हुई लग्ज़िश में।।

ज़ख़्म दिल के हैं सजाने काबिल

कोई रहता जो दिले बेहिस में।।

मिल के कुछ और तमन्ना जगती

ख्वाहिशें  खत्म हुई ख्वाहिश में।।

सुरेशसाहनी, कानपुर

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