इश्क़ में कौन मिटा करता है।

दर्द में कौन दुआ करता है।।


एक महबूब का ग़म साथ लिये

अब कहाँ कौन जिया करता है।।


अब किसे वक़्त है फुर्सत किसको

आजकल कौन वफ़ा करता है।।


अब ग़में - इश्क़ गयी बात हुई

कौन अब शिक़वा- गिला करता है।।


कौन लेगा ये पुराने सिक्के

अब भिखारी भी मना करता है।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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