ये हुस्न है बेहिसाब लेकिन
तुम्हीं नहीं लाज़वाब लेकिन
तुम्हारी ख़्वाहिश थी दिल की महफ़िल
हमारा घर था ख़राब लेकिन
ये डर था कांटों से क्या निभेगी
चुभे हैं हमको गुलाब लेकिन
के डगमगाए हैं उनसे मिलकर
सम्हालती है शराब लेकिन
भरोगे दामन में चांद तारे
दिए हैं तुमने अज़ाब लेकिन
गुरुर करने का तुमको हक़ है
ढलेगा इकदिन शबाब लेकिन
Suresh sahani
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