ख़ुदा कुछ काम ऐसे कर गया था।

भरोसा आदमी का मर गया था।।

हमें पूँजीपरस्ती भा रही है

इबादत से तेरी मन भर गया था।

तेरा मकसद समझ में आ रहा है

मैं नाहक इस कदम से डर गया था।।

वो बस्ती क्यों जली इतना पता है

कोई मज़हब का सौदागर गया था।।

बड़े लोगो से कम उम्मीद रखो

यज़ीदी जंग में असगर गया था।।

उसे राहत मिली है मैक़दे में

बशर दैरोहरम होकर गया था।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है