इस नज़्म पर तवज्जह चाहूंगा।समाअत फरमायें--


तुम अगर याद न आते तो कोई बात न थी

याद आ आ के मेरे दिल को सताते क्यूँ हो।

मैं तुम्हे भूल गया हूँ ये भरम है मेरा

तुम मुझे भूल गए हो तो जताते क्यूँ हो।।


चंद दिन मेरे रक़ीबों के यूँ ही साथ रहो

चंद दिन और मुझे खुद को भुला लेने दो।

चंद दिन और मेरे ख़्वाब में मत आओ तुम

तुरबते-ग़म में तेरे मुझ को सुला लेने दो।।

एक मुद्दत से तेरी याद में सोया भी न था

सो गया हूँ तो मुझे आ के जगाते क्यों हो।।


यूँ रक़ाबत में सभी रस्म ज़रूरी है क्या

जानते बूझते पै- फातेहा आते क्यूँ हो।

एक काफ़िर को तेरे बुत से भी नफ़रत है अगर

संग अगियार के आ आ के जलाते क्यूँ हो।।

इतनी उल्फ़त थी अगर मुझको भुलाया क्यों था

और नफ़रत थी तो फिर सोग मनाते क्यूँ हो।।

सुरेश साहनी कानपुर

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