कुछ दर्द 

मेरे अच्छे बुरे वक्त के

साथी हैं

मैं किनको ज़ुदा कर दूँ

दो चार सुखों ख़ातिर

ये साथ नहीं होंगे 

तब नींद न आएगी

जागेगा कोई फिर क्यों

रातों को मेरी ख़ातिर

उन हिज़्र की रातों के

ये दर्द ही साथी हैं

तुम ग़ैर नहीं हो पर

ये दर्द तो अपने हैं

ये हैं तो मेरी आँखों के

ख़्वाब भी ज़िंदा हैं

खोने के अंदेशों में

पाने की तमन्ना है

अब इनसे जुदा होकर

ऐसा न हो मिट जाये

जीने की उम्मीदें की

जीने की तमन्ना भी........

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