ज़ुबाँ शीरी   निगाहों में अना थी।

कि उसकी कैफ़ियत कितनी जुदा थी।।

कोई उसकी तरह हो तो बताएं

ज़माने से अलग उसकी अदा थी।।

वो झोंका था कोई ताज़ा हवा का

हँसी उसकी बहारों का ज़िया थी।।

नज़र उसकी क़ज़ा थी दुश्मनों पर

तो अपनों के लिए उठती दुआ थी।

ज़माना ज़िक्र मेरा भी करेगा  

कहेगा साहनी भी क्या बला थी।।

सुरेशसाहनी

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