मैं देहरी तुम आंगन हो ना।
तुम तन हो मन हो धन हो ना।।
मैं तो स्याह अंधेरे में हूँ
तुम तो रोशन रोशन हो ना।।
माना मैं हूँ रात पूस की
तुम हरियाया सावन हो ना।।
मैं जैसा हूँ वैसा ही हूँ
तुम तो उनका जीवन हो ना।।
हैं तुमसे श्रृंगार महल के
पायल चूड़ी कंगन हो ना।।
दम घुटता था प्रेम गांठ से
अब तो तुम बे बन्धन हो ना।।
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