मस्ती भरी उमंग के मौसम नहीं रहे।
उनके हमारे संग के मौसम नहीं रहे।।
तन्हाइयों ने दिल में मेरे घर बना लिए
महफ़िल में राग रंग के मौसम नहीं रहे।।
आयी नहीं बहार की फागुन चला गया
आये नहीं अनंग के मौसम नहीं रहे।।
वो सर्दियां वो गर्मियां वो बारिशें कहाँ
पहले के रंग ढंग के मौसम नहीं रहे।।
वो लोग वो अलम वो ज़माने गए कि अब
वो झूमते मलंग के मौसम नहीं रहे।।
वो सावनी फुहार वो बागों में झूलना
वो पेंच वो पतंग के मौसम नहीं रहे।।
उठती थी देख के जो उन्हें इस लिबास में
दिल मे उसी तरंग के मौसम नहीं रहे।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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