ज़ख़्म फिर से हरे हो गये।

सामने  वो  मेरे   हो गए।।

आपकी आदतें सीखकर

हम भी कुछ सिरफिरे हो गए।।

इश्क़ पर बंदिशें क्या हुईं

ख़त्म सब दायरे हो गये।।

फिर हवाएं बसंती चलीं

आम तक बावरे हो गये।।

तुम से हम कब हुए क्या पता

हम तो कब के तेरे हो गए।।


सुरेश साहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है