यार भैया आप लोग मात्रा कैसे गिरा लेते हो। मैं तो मालूम और मालुम में कन्फ्यूजियाया रहता हूं। Hari Shukla भाई साहब आप कविता के सच्चे साधक हैं।  और वैसे भी हम लोग जिस विभाग से आते हैं वहां हिंदी या उर्दू नहीं हिंदुस्तानी बोली बोली जाती है। जो सर्वोत्तम है। नफीस भी और सुग्राह्य भी।

 लोग तेरा को तिरा कहकर ग़ज़ल की बहर निबाह लेते हैं।एक मैं हूं जो बहर को उठाने के लिए मात्रा गिराने से बहुत डरता हूं।कई बार तो पूरी की पूरी ग़ज़ल लिख के मिटानी पड़ी। मगर मात्रा गिराने के चक्कर में मेरा को नहीं मारा। पर अबकी किसी गजल में मेरा को मिरा लिखना पड़ा तो मैं मरा लिखना कुबूल करूंगा, वरना ग़ज़ल को तीन बार तलाक कह दूंगा। आखिर अपने शायर को मेआर पे लाने के लिए कोई कितना गिरेगा। जो गिर गया समझो मर गया।


मरा किरदार  समझा है किसी ने।

मुझे कब यार समझा है किसी ने।।


मरे सीने में भी इक दिल निहां है

ये पहली बार समझा है किसी ने।।


बहुत दिन तक मुझे प्यादा बताया

अभी सरदार समझा है किसी ने।।


 कोई खोलेगा पढ़ कर फेक देगा

फकत अखबार समझा है किसी ने।।


गुलामे -नफ्स है जिसमें हवस भी

उसी को प्यार समझा है किसी ने।।


सभी देखें हैं बस शफ्फाकपोशी

कहां अबरार समझा है किसी ने।।

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