भाव भरा आलिंगन तुम हो।

कविता का अनुगूँजन तुम हो।।

आशा का उसके प्रतिफल से

स्नेह स्निग्ध अनुमेलन तुम हो।।


तुम प्रेयसि हो मधुर स्वप्न की

तुम नयनों का मधुर स्वप्न हो

तुम नर्तन का मूल भाव हो

मन मयूर का नर्तन तुम हो।।


सदा कल्पना में प्रस्तुत हो

पर यथार्थ में ओझल हो तुम

योगी के तप का खंडन तुम

या कामी का चिंतन तुम हो।।


हरसिंगार सी सदा सुवासित

तन मन करती हो उद्वेलित

हो तुम अनहद नाद सरीखी

मन वीणा का वादन तुम हो।।


जो भी हो भावों से होकर

मेरी कविताओं में उतरो

मैं साधक हूँ शब्द ब्रम्ह का

नाद ब्रम्ह तुम साधन तुम हो।।

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