मैं बाँधे हुए सर पे कफ़न लौट रहा हूँ।

मैं अपने वतन से ही वतन लौट रहा हूँ।।


मै कृष्ण नहीं फिर भी ग़रीबउलवतन तो हूँ

पीछे है कई कालयवन लौट रहा हूँ।।


सैयाद ने दे दी है हसरर्तों को रिहाई

अर्थी लिए उन सब की चमन लौट रहा हूँ।।


हसरत नहीं,उम्मीद नहीं फिर भी यक़ी है

महबूब से करने को मिलन लौट रहा हूँ।।


बरसों की कमाई यही दो गज की जमीं है

धरती को बिछा ओढ़ गगन लौट रहा हूँ।।


सुन ले ऐ करोना तुझे मालूम नही है

तू चीन जा मैं करके हवन लौट रहा हूँ।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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