दिल की सब बीमारियां जाती रहीं।

इस तरह रूसवाइयां जाती रहीं।।

दर्द हैं, कुछ रंज़ है, यादें भी हैं

तुम गये तनहाइयाँ जाती रही।।

ख़्वाब थे कुछ नर्मदिल आते रहे

नींद थीं हरजाईयाँ जाती रहीं।।

शामें-हिज़्रां ने अनलहक़ कर दिया

झूठ थीं परछाईयाँ जाती रहीं।।

नेकियों के फल हमें ऐसे मिले

क़ल्ब की अच्छाइयां जाती रहीं।।

ऐ खुदा तेरा भी घर वीरान है

अब तो अपनी दूरियाँ जाती रहीं।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है